भारत में आपातकाल क्यों लगाया गया इसके पीछे क्या कारण थे ?

हमारे देश भारत का इतिहास कई वर्ष पुराना होने के साथ साथ हमारे देश में कई ऐसी घटनाये भी घाटी है जिससे हमारे देश भारत को काफी ज्यादा हानि भी हुयी है। आज एक घटना के बारे में आपको बताने जा रहे है, ये घटना है 1975 में लगे आपातकाल की। इस आपातकाल या कहें इमरजेंसी की घटना शायद आज की पीड़ी को इसके बारे में ज्यादा जानकारी न हो , और शायद वे लोग इस आपातकाल को आम समय जैसा सोचते होंगे। लेकिन उन लोगो से पूछना जिन लोगो ने इस आपातकाल के दौरान काफी ज्यादा यातनाये झेली हो. उनसे अगर आप पूछेंगे तो आपको पता चलेगा कि यह कोई छोटी -मोटी घटना नहीं थी बल्कि भारतीय इतिहास में हुई प्रमुख घटनाओं में से एक थी। क्यूंकि जैसे 1947 से पहले हमारे देश भारत पर अंग्रेजो का शाशन था और उस समय अंग्रोजे ने हमारे देश के लोगो पर कई जुल्म किये ठीक उसी प्रकार 1975 में इंदिरा गांधी की सरकार ने भारत में आपातकाल की घोसणा करने के बाद कई लोगो पर जुल्म ढाये और कई बड़े बड़े लोगो या भारत के बहुत बड़े नेताओ को जेल में बन कर दिया।साथ ही बहुत सरे लोगो पर गोलिया चला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया, और कई लोगो की जबरन नसबंदी भी करवाई गयी। और भी बहुत कुछ इस आपातकाल के दौरान इस देश के लोगो को झेलना पड़ा था , इसकी आज हम अपने वेबसाइट centrokerala के माध्यम से विस्तार से जानकारी देने वाले है।

और साथ ही आपके कुछ सवालो के जवाब भी देने वाले है जैसे आपातकाल क्यों लगया गया? आपातकाल लगाने के पीछे क्या कारण था? आपातकाल क्यों और कब हटाया गया ? या फिर इस आपातकाल से हमारे देश पर क्या परिणाम हुए? ऐसे ही बहुत सरे सवालो के जवाब आज के इस आर्टिकल में आपको मिलने वाले है।

भारत में आपातकाल का इतिहास

सबसे पहले हम आपातकाल से कुछ समय पहले की बात कर लेते है की आखिर उस समय ऐसा क्या चल रहा था जिससे भारत में आपातकाल लगाने की नौबत आन पड़ी।

सन् 1975 में भारत में चुनाव हुए थे जिसमें उत्तर प्रदेश के रायबरेली शहर में कांग्रेस की तरफ से इंदिरा गांधी और उनके सामने थे राजनारायण। तो रायबरेली में हुए इलेक्शन में इंदिरा गांधी भारी मतों से जीत गए। इसके बाद इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री बनी लेकिन रायबरेली में राजनारायण के जितने के सांचे ज्यादा थे और लोगों को भी यही लगता था कि राजनारायण जीतेंगे पर वो हार गया लेकिन इससे पहले रायबरेली में लोगो को लगता था की राजनारायण के जीतने का मौका इंदिरा गाँधी से ज्यादा है. और सबको यही लगता था की अगर रायबरेली से कोई जीतेगा तो वो है राजनारायण। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि राजनारायण बहुत बुरे तरीके से हार गए। लेकिन फिर राजनारायण को शक हुआ आखिर लोग उन्हें चाहते है यहाँ की जनता और सब लोग यही कह रहे थे तो आखिर वह हार कैसे गए, उन्हें शक हुआ की हो सकता है इंदिरा गाँधी ने चुनाव में कुछ घपला किया हो।

आपातकाल
इंदिरा गांधी और राजनारायण

यह शक इतना आगे पहुंच गया की राजनारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इंदिरा गांधी के खिलाफ एक केश कर दिया और मांग की कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में कुछ न कुछ गड़बड़ी की है और इसकी जाँच की जाये। उस समय राजनारायण की लोकप्रियता भी बहुत ज्यादा थी तो उस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गाँधी के खिलाफ जाँच का प्रस्ताव दे दिया। की क्या आखिर इंदिरा गाँधी ने 1971 के चुनाव में कुछ गड़बड़ी की है या फिर उन्होंने ये चुनाव खुद के दम पर लड़ा।

इंदिरा गाँधी और के बीच अनबन

इसके अलावा इंदिरा गाँधी और भारतीय न्यायतंत्र के बीच काफी सालो से अनबन शुरू थी और इस अनबन के पीछे का कारण लाल बहादुर शास्त्री जी के रहस्यमयी तरीके से मौत हो जाना था। तबसे देश के प्रधानमंत्री और देश के न्यायतंत्र के बीच कुछ भी सही नहीं चल रहा था।

क्योंकि लाल बहादुर शास्त्री जी, इंदिरा गाँधी जी से पहले देश के प्रधानमंत्री थे और मौत रहस्यमयी ढंग से होना किसी ने भी सोचा नहीं था। शास्त्री बहादुर शास्त्री जी की मौत आज भी एक रहस्य है किसी को भी नहीं पता की उनकी मौत आखिर कैसे हुयी। तो इतनी बड़ी घटना के बाद इंदिरा गाँधी और भारत का न्यायतंत्र आमने-सामने हो गए थे और बाद में और भी कई प्रसिद्ध भी केस हुए थे। जिनमे गोलकनाथ केस, केशवानंद भारती केस और मिनर्वा मिल्स जैसे और केस भी हुए थे। ये सब केस इसलिए हुये थे क्योंकि संविधान में संशोधन करने को लेकर। यानी हमारे संविधान में नए कायदे कानून बनाना या फिर पुराने कायदे कानून में फेरबदल करना। इन बातों के लिए सभी कैश हुए थे।

जिस कारण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और भारत के जुडिशरी यानी न्यायतंत्र के बीच अनबन बढ़ती ही जा रहे थे। अब निचे दिए गए फोटो को देखिये यह जय प्रकाश नारायण जिन्हे जेपी नारायण भी कहा जाता है। वह भारत की आज़ादी की लड़ाई में इन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। लेकिन आजादी के बाद यह राजनीति से दूर हो गए और एक साधारण जीवन जीने लगे। अगर आज़ादी के बाद जेपी नारायण राजनीति में आते हैं तो नेहरू और सरदार पटेल की तरह उनका भी नाम एक बड़े नेता के तौर पर होता लेकिन वे अपने घर बिहार चला गए थे।

भारत में आपातकाल क्यों लगाया गया इसके पीछे क्या कारण थे ?
जय प्रकाश नारायण

अब 1971 का चुनाव जिसे कांग्रेस या कहे तो इंदिरा गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर जीत लिया था। इसके बाद 1971 में ही भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हो गयी थी और इस वजह से अमेरिका ने भारत पर कई प्रतिबन्ध भी लगा दिए थे जिस वजह से अमेरिका से आने वाली चीजों पर भी रोक लग गयी। क्योंकि उस समय हमारे देश की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी जिसकी वजह से हमें अन्य देशो पर निर्भर होना पड़ता था। लेकिन जैसे ही 1971 में अमेरिका से सामान पर प्रतिबन्ध लगा वैसे ही हमारे देश में महंगाई अपने चरम पर जाने लगी और कांग्रेस का दिया हुआ नारा गरीबी हटाओ इससे बिलकुल उलटे हालत इस देश में होने लगे थे।

देखते ही देखते 1973 में चीजों और महंगाई दर 23% तक बढ़ गयी थी। और 1976 आते आते वही महंगाई दर 30 प्रतिशत तक जा पहुंची थी। उन दिनों हमारी कृषि उत्पादन भी इतना सक्षम नहीं था और लोग भी बेरोजगार होते जा रहे थे। कृषि उन्नत न होने चलते खाना मिलना भी मुश्किल हो रहा था। इस दौरान देश में सबसे बुरा हाल बिहार राज्य का था। इसलिए बिहार के छात्रों ने 1974 में महंगाई काम करने, चीजों के दाम काम करने, भ्रष्टाचार हटाने और रोजगार देने के लिए आंदोलन करना शुरू कर दिया। इस आंदोलन में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार जैसे आज के कई बड़े नेता शामिल हुए थे।

टोटल रेगुलेशन या जेपी मूवमेंट

उस समय तो धीरे-धीरे छात्र आंदोलन बड़ा हो रहा था और उस समय जेपी नारायण बिहार में समाज सेवा का काम करते थे। जेपी नारायण का नाम काफी बड़ा था और लोग काफी सम्मान देते थे। इसलिए छात्रों ने जेपी नारायण को आंदोलन में साथ देने का बुलावा भेजा कि आप आइये और हमारा साथ दें। जेपी नारायण भी सरकार से बहुत परेशान थे क्योंकि बिहार की हालत इतनी खराब थी फिर भी सरकार हाथ पर हाथ रखकर बैठे थे। इसलिए जेपी नारायण ने ही छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया और कुछ शर्तें रखी कि हम किसी भी तरह की हिंसा नहीं करेंगे और ये आंदोलन सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं रहेगा पूरे देश में होगा। और जेपी नारायण के आने के बाद लाखों लोग इस आंदोलन में जुटने लगे। इन्होंने बहुत कोशिश की कि बिहार में कांग्रेस सरकार इस्तीफा दे दें लेकिन बिहार सरकार ने इस्तीफा देने से मना कर दिया। पर आंदोलन अब भी जारी रहा जिसे टोटल रेगुलेशन या जेपी मूवमेंट कहते हैं।

इस छात्र आंदोलन को देखकर बिहार में एक और आंदोलन शुरू हुआ जिसे बिहार रेलवे आंदोलन कहते हैं। नीचे दिए गए तस्वीर में आप देख सकते है इस आंदोलन का नेतृत्व जॉर्ज फर्नांडिस कर रहे थे। और ये जितने भी आंदोलनकारी है वे सब के सब रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी हैं। और इसी साल 1975 में ऐसा ही आंदोलन गुजरात में भी शुरू हुआ था जिसका नाम था नवनिर्माण आंदोलन। इस आंदोलन का नेतृत्व मोरारजी देसाई और चिमन भाई पटेल कर रहे थे। और ये आंदोलन इतना बड़ा था की इससे इंदिरा गाँधी को गुजरात में बहुत बड़ा झटका लगा और उन्हें गुजरात से अपनी सरकार हटाने पर मजबूर कर दिया। उसके बाद 1975 में फिरसे गुजरात में चुनाव हुए जिसमे कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

जॉर्ज फर्नांडिस
जॉर्ज फर्नांडिस

और इसी दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय सबसे बड़ा फैसला सुनाता है। शुरू में मैंने बताया था कि राजनारायण ने रायबरेली के चुनाव में इंदिरा गांधी पर केस किया था कि उन्होंने चुनाव में कुछ गड़बड़ी की है जिसकी जाँच जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा कर रहे थे। उन्होंने 12 जून 1975 के दिन अपना फैसला सुनाया उन्होंने कहा की रायबरेली चुनाव में इंदिरा गाँधी ने इलेक्टोरल माल प्रैक्टिस की थी। इसका मतलब होता है कि इंदिरा गांधी ने गलत तरीके से चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने कहा इंदिरा गाँधी ने सरकारी कर्मचारियों का चुनाव जीतने के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल किया। साथ ही सरकारी तंत्र का गलत इस्तेमाल करके 1971 का चुनाव जीता था।

उस समय इंदिरा गाँधी पर कई आरोप लगे थे जिस वजह से इंदिरा गाँधी को लोकसभा की सदस्यता से भी हटाया गया। और इसी के साथ हाई कोर्ट ने इंदिरा गाँधी को अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने प्रतिबन्ध लगा दिया। इसका मतलब ये था की इंदिरा गाँधी अगले 6 सालो तक किसी भी प्रकार का चुनाव नहीं लड़ सकती थी और इससे इंदिरा गाँधी का राजनैतिक जीवन मानो खतरे में आ था। क्योंकि अगले साल 1975 में इलेक्शन आने वाले था। और इस फैसले के बाद 24 जून के दिन सभी विपक्षी दल और जय प्रकाश नारायण सहित हजारों लोगों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में प्रदर्शन करना शुरू किया और इन्होंने मांग रखी कि इंदिरा गांधी इस्तीफ़ा दे दे।

लेकिन इंदिरा गाँधी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। इससे पहले वे इस्तीफा देती इंदिरा गाँधी ने 25 जून 1975 के दिन पुरे भारत में आपातकाल की घोसणा कर दी। जब भी हमारे देश भारत में आपातकाल की स्थिति आती है तो संविधान में कुछ ऐसे क़ानून बनाए गए है जिसके तहत हमारी सरकार आपातकाल लगा देती है।

कब लगाया जाती है आपातकाल (Emergency)

हमारे देश में आपातकाल 3 कारणो की वजह से लगाया जा सकता है

  1. जब देश को बाहर से खतरा हो
  2. जब देश को अंदर से खतरा हो
  3. और जब देश की वित्तीय स्थिति खराब हो गई हो

तो जब हमारे देश का संविधान लिखा गया तब संविधान लिखने वालो ने भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, लोकतंत्र और राजनीतिक व्यवस्था खतरे में हो तब ऐसी स्थिति या ऐसी परिस्थिति में हमारे देश में आपातकाल लगाया जाता है। यह 3 प्रकार का होता है।

राष्ट्रीय आपात (National Emergency)

सबसे पहले नेशनल इमरजेंसी या कहे तो राष्ट्रीय आपात जो संविधान में आर्टिकल नंबर 352 के तहत लगाई जाती है। जिसमें अगर किसी देश के साथ भारत का युद्ध शुरू हो जाए यानी बोर्ड या फिर कोई बाहरी ताकत या कोई ग्रुप भारत पर हमला करते हैं आंतरिक या बाहरी आक्रामकता या फिर देश के लोग देश पर हमला करते हैं यानी आम रिबेल या तो ये तीन वजह से नेशनल इमरजेंसी लागू की जाती है।

  • अगर भारत सरकार को ऐसा लगे कि भारत पर कोई हमला करने वाला है, जैसे की पाकिस्तान हमला करने वाला है या फिर हमारे देश के नक्सलवादी हम पर हमला करने वाले है। चाहे वे बाद में हमला करे या ना करे लेकिन युद्ध की स्तिथि बनने पर भी सरकार आपातकाल लगा सकती है। तो इसे नेशनल इमरजेंसी यानी राष्ट्रीय आपात कहते हैं।

तो इससे पहले साल 1962 के दौरान भारत का पाकिस्तान और चाइना से युद्ध हुआ था तब यह नेशनल इमरजेंसी लगाई गई थी और फिर उनमें 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध हुआ था तब भी इमरजेंसी लगाई गई थी।

राज्य आपातकाल (State Emergency)

प्रेसिडेंट रियल एस्टेट एमरजेंसी या राज्य आपातकाल संविधान में आर्टिकल नंबर 354 के तहत लगाई जाती है। इसमें अगर भारत के किसी राज्य की सरकार हमारे केंद्र की सरकार के ख़िलाफ़ हो जाएं या केंद्र सरकार के निर्देश का पालन करने से कोई राज्य सरकार मना कर दें। जैसे गुजरात में जब नवनिर्माण आंदोलन हुआ था तब गुजरात में केंद्र सरकार ने यानी इंदिरा गांधी की सरकार ने इमरजेंसी लगा दी थी। जिसके बाद गुजरात राज्य पर गुजरात राज्य सरकार का शासन हटा दिया जाता है और सीधा ही केंद्र सरकार का शासन शुरू हो जाता है। तो इस तरह से स्टेट एमरजेंसी यानी राज्य पर राज्य आपातकाल लगाया जाता है।

वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency)

फाइनेंसियल इमरजेंसी यानी वित्तीय आपातकाल संविधान में आर्टिकल नंबर 260 के तहत लगाई जाती है। तो जब भारत के वित्तीय हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाती है मतलब देश की वित्तीय स्थिति बिगड़ जाए देश आर्थिक रूप से कंगाल हो गया हो तब यह इमरजेंसी लगाई जाती है।

तो इनमें से 1975 में इंदिरा गांधी ने जो नेशनल इमरजेंसी लगाई थी उसका कारण उन्होंने देश में आंतरिक गड़बड़ी बताया। यानी आंतरिक गड़बड़ी का कारण देकर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया था। जो बाद में पता चला कि देश में ऐसा कुछ नहीं था। और इंदिरा गांधी ने सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक जीवन को बचाने के लिए पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी थी। इसीलिए तो भारत के इतिहास में यह इमरजेंसी की घटना इतनी विवादास्पद बनी रहे हैं।

अब इस नीचे दिए गए तस्वीर को देखिये, यह तब की फोटो है जब इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन से देश में इमरजेंसी का ऐलान किया था। तब उन्होंने कहा था कि देश में आपातकाल जरुरी हो गया है। क्योंकि कुछ ग्रुप है जो भारत की सेना और पुलिस को सरकार के खिलाफ विद्रोह के लिए भड़का रहे हैं इसलिए देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए इमरजेंसी का फैसला लिया गया है।

भारत में आपातकाल क्यों लगाया गया इसके पीछे क्या कारण थे ?
इंदिरा गाँधी आल इंडिया रेडियो स्टेशन में

अब आपको जानकर बड़ा आश्चर्य होगा के इमरजेंसी लगाने से पहले ही इंदिरा गांधी ने लिस्ट बना ली थी कि किन -किन राजनेताओं को जेल में डालना है। और जैसे ही इमरजेंसी की घोषणा हुई उन सभी बड़े-बड़े नेता जिनका नाम इंदिरा गांधी की लिस्ट में था उन सबको रातों रात जेल में डाल दिया गया। जिसमें सभी विपक्षी दल के नेता, सभी प्रमुख सांसद इन सबको जेल में बंद कर दिया गया था। इन प्रमुख सांसदों को जेल में बंद करने के पीछे सिर्फ एक ही कारण था कि इन्हे संसद में जाने से रोकना ताकि इंदिरा गाँधी की सरकार को संसद में जो भी बिल पास करवाना हो वो बिना किसी दिक्कत के पास हो जाये। और इंदिरा गाँधी जो चाहे वो कर सके।

नीचे दिया गया यह न्यूज़पेपर पेपर की फोटो उस समय की है, इसमें आप देख सकते हैं कि जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, लाल कृष्ण अडवाणी, वाजपेयी जैसे सभी बड़े-बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। जो भी नेता आंदोलन करने वाले थे या फिर सरकार को उनसे कुछ दिक्कत हो सकती थी तो उन सबको गिरफ्तार किया गया। और यहाँ तक की जिन-जिन लोगो को गिरफ्तार किया गया था उन लोगो के परिवार वालो तक को नहीं बताया गया था की उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है या फिर अगर उन्हें पता भी चला तो उनको ये नहीं बताया गया की उन्हें कहा और किस जेल में बंद करके रखा गया है। यह सिर्फ इंदिरा गाँधी की सरकार को ही पता था।

भारत में आपातकाल क्यों लगाया गया इसके पीछे क्या कारण थे ?

इन सभी बड़े-बड़े लोगो को या फिर राजनेताओ को अकेले में रखा गया, उन्हें जेल में बहुत परेशान भी किया गया , यहाँ तक कि अगर कोई बीमार हो गया हो तो उसका इलाज भी नहीं किया गया। उन्हें ऐसी यातनाओ के हजारो उदाहरण आज भी मौजूद है।
इमरजेंसी लगने के सिर्फ 7 दिन के अंदर ही 15000 लोगों को जेल में डाल दिया गया था। अगर इस बीच में कोई मिलने आता था तब भी इंदिरा गांधी के खुफिया अधिकारी वहां तैनात रहते थे ताकि ये लोग सरकार के खिलाफ कोई षड़यंत्र न रचे। अंग्रेजो के समय कालापानी की सजा पाए लोगो के साथ अंग्रेज जो भी यातनाये उन्हें देते थे वैसे ही इंदिरा गाँधी की सरकार ने आपातकाल के दौरान इन राजनेताओं के साथ किया।

इन्हे रात में सोने नहीं देना, इन्हे भूखा रखना, पानी नहीं देना और बहुत भूखा रखने के बाद बहुत ज्यादा खाना खिलाकर उन्हें कई घंटों तक एक ही जगह पर खड़ा रखना, डराना, धमकाना और महीनों तक सवाल पर सवाल पूछना कि आपके बाकी साथी कहा है।
क्योंकि कई विपक्षी नेता गायब हो गए थे। जैसे सांसद सुब्रमण्यम स्वामी रातोरात अमेरिका भागे थे। उस समय ऐसे कई नेता थे जो अब गिरफ्तार नहीं हुए थे उन्हें खोजा जा रहा था।

अब इस नीचे दिए गए तस्वीर को देखिये यह केरल के राजन इन्हे मशीन के पट्टो के बीच दबाया गया था जिससे उनके शरीर के बहुत से हड्डियां टूट गए थे। और जैसा की मैंने शुरू में बताया था जॉर्ज फ़र्नांडिस जो रेलवे कर्मचारी की हड़ताल का नेतृत्व कर रहे थे उनके भाई लॉरेंस को बैंगलोर में पुलिस ने इतना मारा कि वह कई सालों तक सीधे खड़े तक नहीं हो पाए थे। और इस हड़ताल में जो रेलवे के सरकारी कर्मचारी थे उन सभी को भी जेल में डाल दिया गया और इनके परिवार जो रेलवे क्वार्टर में रहते थे उन्हें भी वहां से भगा दिया गया था।

भारत में आपातकाल क्यों लगाया गया इसके पीछे क्या कारण थे ?

इमरजेंसी लगने के बाद गुजरात और बिहार के जो छात्र पर्चियाँ बांट रहे थे उनमें से 2 छात्रों को फांसी पर लटका दिया गया था।
दिल्ली में एक स्लम एरिया थाइसमें रहने वाले लोगो ने आवाज उठाई तो पुलिस ने इन पर गोलियां चला दी जिससे कई गरीब लोगो की मौके पर ही मौत हो गयी। और सिर्फ पुरुषों के साथ ही ऐसा नहीं हुआ था बल्कि महिलाओ के साथ भी ऐसा ही ब्यवहार किया गया। गायत्री देवी और विजयराजे सिंधिया को बीमार कैदियों के साथ रखा गया था। श्री लता मृणाल गोरे और दुर्गा भागवत जो समाजवादी नेता थे उन्हें पागलखानों में पागल लोगों के बीच रखा गया था।

उस समय इंदिरा गाँधी की सरकार ने कुल मिलाकर 1 लाख 40 हजार लोगो को बिना किसी गलती के 1 साल 8 महीने तक जेल में बंद रखके उन्हें यातनाये दी गयी। क्योंकि संविधान के अनुसार सरकार को इमरजेंसी के दौरान अगर ऐसा लगे कि ये व्यक्ति विद्रोह करेगा तो विद्रोह करने से पहले उसे जेल में डाल दिया जाता है। यानी अपराध करने से पहले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

भारत के संविधान को इंदिरा गाँधी ने कैसे तोड़ा मरोड़ा

जैसा की हमने आपको पहले भी बताया की सभी विपक्षी दलों के सांसदों को इंदिरा गाँधी की सरकार ने जेल में डाल दिया। यानी अब संसद में सिर्फ इंदिरा गांधी की सरकार के ही सांसद बैठे थे। क्योंकि सबसे पहले इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बदलना था राजनारायण केस आपको याद होगा जिसके बारे में हमने शुरू में बात की थी। तो इस केस के कारण इंदिरा गांधी को लोकसभा के मेम्बर और 6 साल तक इलेक्शन लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। तो इंदिरा गांधी ने इस इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बदल दिया। भारत के संविधान में कानून लाने की कोशिश की गई कि भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष पर जीवन भर यानी पूरी जिंदगी किसी भी अपराध को लेकर कोई भी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस कानून को राज्यसभा ने तो पास कर दिया था लेकिन लोकसभा में इसे पेश नहीं किया गया था और हमारे संविधान के 42वें संसोधन जो की सबसे कठोर संसोधन है इसके जरिये संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने, इसे नुकसान पहुंचाने, और सरकार के तीनो अंग न्यायपालिका,कार्यपालिका,और विधायिका का संतुलन बिगड़ने का भी पूरा प्रयास किया गया था।

इमरजेंसी के पहले हफ्ते में आर्टिकल 14, आर्टिकल 21 और आर्टिकल 22 को निलंबित कर दिया गया था। ऐसा करके सरकार ने कानून की नजर में सबको बराबरी, जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी और गिरफ्तारी को अदालत के सामने पेश करने के अधिकार को रोक दिया था। और इसके बाद आर्टिकल 19 को भी निलंबित कर दिया। जिससे प्रकाशन, संघ बनाना और सभा करने की आज़ादी लोगों से छीन लिए गए थे।

रासुका कानून (Rasuka Act)

इसके अलावा इंदिरा गांधी सरकार ने रासुका कानून को भी लागू कर दिया गया था जिसके तहत जिन लोगो को जेल में डाला गया है वे लोग ये कभी नहीं जान पाएंगे की उन्हें आखिर जेल में क्यों डाला गया है या फिर क्यों डाला गया था। यानी उन्हें जेल में क्यों बंद किया गया है उस बारे में वे लोग सरकार से सवाल नहीं पूछ सकते हैं। और इस रासुका एक्ट में फेरबदल की बहुत कोशिश की थी। श्रीमती इंदिरा गांधी ने जैसे जेल में थे राजनेता कोर्ट में अपील नहीं कर सकते उनका अधिकार छीन लिया गया था। और इन लोगों की जानकारी कोर्ट या किसी और को देना भी अपराध बना दिया गया था। यानी मान लो अगर आप जेपी नारायण के रिश्तेदार हैं और आपको पता चल गया कि जेपी नारायण को तिहाड़ जेल में रखा गया है अगर यह बात आपने किसी को बताई तो आपको भी जेल में डाल दिया जायेगा। तो ऐसा बहुत कुछ किया था इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने इन्होंने संविधान को तोड़ने मरोड़ने की पूरी कोशिश की थी जिसमें इमरजेंसी के दौरान उन्हें काफी फायदा भी हुआ था।

आपातकाल के दौरान भारतीय मीडिया के हालात

जिस दिन आपातकाल की घोसणा की गयी थी या फिर कहे तो जिस दिन आपातकाल लगा था उसके अगले ही दिन जो भी बड़े बड़े अखबार के खरखाने थे जो न्यूज़ पेपर छापने का काम करते थे उन कारखानों की बिजली काट दी गयी। ताकि इमरजेंसी के दौरान जिन भी बड़े बड़े नेताओ को गिरफ्तार किया गया है उनके बारे में या फिर उनकी गिरफ़्तारी के बारे में कोई भी खबर ना छाप सके। ताकि आम जनता को इस बारे में कुछ भी पता ना चल सके। और साथ ही साथ सभी बड़े अखबारों पर सेंसर तक बैठा दिया गया। उन सभी बड़े अखबारों के दफ्तर में सरकार का एक आदमी खड़ा कर दिया गया ताकि कोई भी खबर ना छाप सके। सरकार का वही आदमी तय करता था कि कौन सी खबर छापनी है और कौन सी नहीं। उसके बाद ही न्यूज़ पेपर की छपाई होती थी। इसका मतलब इंदिरा गाँधी जो चाहती थी वही उन न्यूज़ पेपर पर छपता था। और अगर कोई भी संपादक कोई खबर चाप भी लेता था तो उसे गिरफ्तार करके जेल में बंद कर दिया जाता था।

भारतीय फिल्मों पर लगाया गया प्रतिबन्ध

अब दिए गए इस पोस्टर पर नज़र डालिये यह पोस्टर अमृत नाहटा द्वारा बनायीं गयी फिल्म की है। यह फिल्म 1975 में लगे इमरजेंसी पर आधारित थी। तो उस समय सरकार ने फिल्म पर भी पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया था और साथी ही साथ पुलिसवालो ने इस फिल्म के सारे प्रिंट जला दिये थे।

भारत में आपातकाल क्यों लगाया गया इसके पीछे क्या कारण थे ?

ऊपर दिए गए तस्वीर के दायीं तरफ गुलज़ार के द्वारा 1975 में बनायीं गयी यह फिल्म जिसका नाम आंधी था यह भी इमरजेंसी या यूँ कहे की इंदिरा गाँधी पर आधारित फिल्म थी। इस फिल्म पर भी सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था। इसके अलावा बॉलीवुड में कई लोगों पर दबाव डाला गया था कि सरकार को अच्छा दिखाने की कोशिश करो वरना जेल में डाल देंगे। जिसमें उस समय के कमाल के गायक किशोर कुमार पर भी सरकार द्वारा दबाव डाला गया कि सरकार के फेवर में ही गाना गए लेकिन उन्होंने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया। तो इस तरह से मीडिया, टीवी और अखबारों को पूरी तरह से दबाया गया था।

सरकार में कैसे लोगों को भ्रमित किया था

इंदिरा गांधी की सरकार ने मजदूर के अधिकार को कम कर दिया था और इमरजेंसी का सबसे बड़ा फायदा देश के उस समय के पूंजीपतियों ने उठाया था। मजदूरों का न्यूनतम बोनस इमरजेंसी के पहले 8.33 प्रतिशत था लेकिन इमरजेंसी के बाद इसे घटाकर 4प्रतिशत कर दिया यानी आधा कर दिया। निजी क्षेत्रों की तरक्की के लिए चीजों के आयात पर छूट दे दी गई और बड़ी बड़ी प्राइवेट कंपनियों पर टैक्स घटा दिया गया। और MNC यानी बाहरी कंपनियों से अनुरोध किया गया कि वे भारत में निवेश करें क्योंकि भारत में अब मजदूरी सस्ती हो गई है। इसलिए कई जगहों पर मजदूरों ने हड़ताल करें लेकिन पुलिस ने मजदूरों को मार मार कर भगा दिया। जैसे बंगाल में इसका विरोध करने वाले 16000 हजार मजदूरों को एक साथ जेल में डाल दिया गया था। और सरकार ने नागरिक अधिकारों का हनन करने के लिए सभी तौर तरीके अपनाए थे। इंदिरा गांधी के शासन ने नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार अन्याय और अत्याचार किया थे। उसकी रक्षा करने वाले वकीलों को भी परेशान किया गया था। कुल मिलकर 42 ऐसे वकील थे जिन्होंने विरोध करने का साहस दिखाया था लेकिन उन्हें भी गिरफ्तार करके जेल में बंद कर दिया गया था।

सरकार ने कराई नसबंदी

और इमरजेंसी के दौरान जो सबसे बुरा हुआ वो था नसबंदी। और उस समय आबादी कंट्रोल करने के लिए सरकार ने जबरन कई लोगों की नसबंदी करना शुरू कर दिया था। और इसके ज्यादा शिकार अल्पसंख्यक हुए थे। और जो लोग इस नसबंदी का विरोध कर रहे थे उन लोगो पर सरकार ने लाठीचार्ज करवाया था और कई लोगो करके जेल में भी डाल दिया था। सरकार ने लोगों से मदद मांगी कि जो लोग दूसरे लोगों की नसबंदी करवाने में मदद करेंगे उन्हें सरकार जमीन देगी। इसलिए कई बेवकूफ लोग जमीन के लालच में भोले भाले लोगों को बहला फुसलाकर उनकी नसबंदी करवाने लगे थे। और जिन कपल को बच्चा नहीं था और न ही वे बच्चे पैदा करना चाहते थे वैसे लोगों को भी नसबंदी करवा दिया गया था। और यहाँ तक की 60-70 साल के बुजुर्ग लोगो के साथ भी ऐसा ही किया गया था।

और इस नसबंदी करने का नेतृत्व संजय गाँधी कर रहे थे। आबादी कण्ट्रोल करना सही था लेकिन उनका ये तरीका किसी भी लिहाज से सही नहीं था। और बाद में इस पर भी एक फिल्म बनी थी लेकिन इस फिल्म पर भी सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया था। ताकि लोगो बारे में पता ना चल सके। और ऐसे ही अनगिनत गलत काम उस समय के इंदिरा सरकार ने किये थे। कुल मिलाकर कहे तो जैसा आजादी से पहले अंग्रेजो ने भारत पर जुल्म किये थे ठीक उसी प्रकार 1975 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी की सरकार ने अपने ही लोगो पर जुल्म किये थे।

मोरारजी देसाई बने भारत अगले प्रधानमंत्री

इसके बाद भारत में जितने भी विपक्षी दल थे वे सब आपस में मिल गए और एक बहुत बड़ा गठबंधन बना दिया गया था। ताकि अगले चुनाव में इंदिरा गांधी की सरकार को हरा सकें। इस गठबंधन का नाम दिया गया था जनता पार्टी और 20 महीने बाद यानी मार्च 1977 में इमरजेंसी को हटा दिया गया। और देश में फिरसे चुनाव हुए और इस चुनाव में इंदिरा गाँधी हार गयी। और जनता पार्टी जीत गई जिसके नेता थे मोरारजी देसाई।

मोरारजी देसाई ने गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन का नेतृत्व किया था। उसके बाद 1977 में मोरारजी देसाई भारत के अगले प्रधानमंत्री चुने गए। मोरारजी देसाई ने सत्ता में आते ही शाह कमीशन का गठन गया। जिसका मतलब होता है कि इमरजेंसी के दौरान जो अत्याचार, अन्याय और मानव अधिकारों का हनन हुआ था उसकी जांच की जाए। आपातकाल क्यों लगाया गया था? उसके कारण क्या थे? इसके परिणाम क्या हुए? इमरजेंसी के दौरान जो कानून और अधिकारों को बनाया गया और संसद में पास किया गया क्या सही था या गलत था? इन सभी चीजों की जांच का काम शाह कमीशन को सौंपा गया और कुछ समय बाद जब शाह कमीशन की रिपोर्ट आई तो पता चला कि इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाई गई इमरजेंसी लगाने का कोई भी ठोस कारण नहीं था
सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए इमरजेंसी लगाई गई थी।

इस कारण इंदिरा गांधी सरकार पर कई सारे केस हुए लेकिन जब तक इन लोगों की कार्रवाई होती इससे पहले मोरारजी देसाई यांनी जनता पार्टी की सरकार गिर गई और इंदिरा गांधी की सरकार वापस आ गई। जिन्होंने सत्ता में आते ही इमरजेंसी के पूरे मामले को रफा दफा कर दिया।

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